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इंदिरा गाँधी की जीवनी ( Indira Gandhi biography in hindi)
भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में पहचान रखने वाली इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय काफी रोचक हैं. उनका इंदु से लेकर इंदिरा और फिर प्रधानमंत्री बनने तक का सफर ना केवल प्रेरणादायी हैं, बल्कि भारत में महिला सशक्तिकरण के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय भी हैं. उन्होंने 1966 से लेकर 1977 तक और 1980 से लेकर मृत्यू तक देश के प्रधानमंत्री का पदभार सम्भाला था.
जन्मदिन (Birth date) | 19 नवंबर 1917 |
जन्मस्थान (Birth place) | इलाहबाद,उत्तर प्रदेश |
पिता (Father) | जवाहरलाल नेहरु |
माता (Mother) | कमला नेहरु |
पति (Husband) | फ़िरोज़ गांधी |
पुत्र (Sons) | राजीव गांधीऔर संजय गांधी |
पुत्र वधुएँ (Son-in-law) | सोनिया गांधीऔर मेनका गांधी |
पौत्र (Grand sons) | राहुल गांधीऔर वरुण गांधी |
पौत्री (Grand daughter) | प्रियंका गांधी |
इंदिरा का जन्म देश की स्वतंत्रता में योगदान देने वाले मोतीलाल नेहरु के परिवार में हुआ था. इंदिरा के पिता जवाहरलाल एक सुशिक्षित वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय सदस्य थे. वो नेहरूजी की इकलौती सन्तान थी, इंदिरा अपने पिता के बाद दूसरी सर्वाधिक कार्यकाल के लिए कार्यरत रहने वाली प्रधानमंत्री हैं. इंदिरा में बचपन से ही देशभक्ति भावना थी, उस समय भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन की एक रणनीति में विदेशी ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करना भी शामिल था. और उस छोटी सी उम्र में, इंदिरा ने विदेशी वस्तुओं की होली जलते देखी थी, जिससे प्रेरित होकर 5 वर्षीय इंदिरा ने भी अपनी प्यारी गुड़िया जलाने का फैसला किया, क्योंकि उनकी वह गुडिया भी इंग्लैंड में बनाई गई थी.
इंदिरा गाँधी ने बनाई थी वानर सेना (Indira Gandhi Vanar Sena)
(इंदिरा अपने माता - पिता के साथ)
इंदिरा गाँधी 12 वर्ष की थीं, तो उन्होंने कुछ बच्चों के साथ वानर सेना बनाई और उसका नेतृत्व किया. इसका नाम बंदर ब्रिगेड रखा गया था जो कि बंदर सेना से प्रेरित था, जिसने महाकाव्य रामायण में भगवान राम की सहायता की थी. उन्होंने बच्चों के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बाद में इस समूह में 60,000 युवा क्रांतिकारियों को भी शामिल किया गया, जिन्होंने बहुत से आम-लोगों को संबोधित किया, झंडे बनाए, संदेश दिए और प्रदर्शनों के बारे में जानकारी आम-जनता तक पहुचाई. ब्रिटिश शासन के होते हुए ये सब करना एक जोखिम भरा उपक्रम था, लेकिन इंदिरा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने से खुश थी.
1936 में, उनकी मां कमला नेहरू तपेदिक से बीमार हो गयी थी, पढाई के दिनों में ही इंदिरा ने स्विट्जरलैंड में कुछ महीने अपनी बीमार मां के साथ बिताये थे, कमला की मृत्यु के समय जवाहरलाल नेहरू भारतीय जेल में थे.
इंदिरा जब इंडियन नेशनल कांग्रेस की सदस्य बनी, तो उनकी मुलाक़ात फिरोज गांधी से हुई. फिरोज गाँधी तब एक पत्रकार और यूथ कांग्रेस के महत्वपूर्ण सदस्य थे. 1941 में अपने पिता की असहमति के बावजूद भी इंदिरा ने फिरोज गांधी से विवाह कर लिया था. इंदिरा ने पहले राजीव गांधी और उसके 2 साल बाद संजय गांधी को जन्म दिया.
इंदिरा का विवाह फिरोज गान्धी से जरुर हुआ था, लेकिन फिरोज और महात्मा गांधी में कोई रिश्ता नहीं था. फिरोज उनके साथ स्वतंत्रता के संघर्ष में साथ थे, लेकिन वो पारसी थे, जबकि इंदिरा हिन्दू. और उस समय अंतरजातीय विवाह इतना आम नहीं था. दरअसल, इस जोड़ी को सार्वजनिक रूप से पसंद नहीं किया जा रहा था, ऐसे में महात्मा गांधी ने इस जोड़ी को समर्थन दिया और ये सार्वजनिक बयान दिया, जिसमें उनका मीडिया से अनुरोध भी शामिल था “मैं अपमानजनक पत्रों के लेखकों को अपने गुस्से को कम करने के लिए इस शादी में आकर नवयुगल को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करता हूं” और कहा जाता हैं कि महात्मा गांधी ने ही राजनीतिक छवि बनाये रखने के लिए फिरोज और इंदिरा को गाँधी लगाने का सुझाव दिया था.
स्वतंत्रता के बाद इंदिरा गांधी के पिताजवाहर लाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे, तब इंदिरा अपने पिता के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गयी थी. उनके दोनों बेटे उनके साथ लेकिन फिरोज ने तब इलाहबाद रुकने का ही निर्णय किया था, क्योंकि फिरोज तब दी नेशनल हेरल्ड में एडिटर का कम कर रहे थे, इस न्यूज़ पेपर को मोतीलाल नेहरु ने शुरू कीया था.
इंदिरा का राजनीतिक करियर (Political Career)
नेहरु परिवार वैसे भी भारत के केंद्र सरकार में मुख्य परिवार थे, इसलिए इंदिरा का राजनीति में आना ज्यादा मुश्किल और आश्चर्यजनक नहीं था. उन्होंने बचपन से ही महात्मा गांधी को अपने इलाहाबाद वाले घर में आते-जाते देखा था, इसलिए उनकी देश और यहाँ की राजनीति में रूचि थी.
1951-52 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी के लिए बहुत सी चुनावी सभाएं आयोजित की और उनके समर्थन में चलने वाले चुनावी अभियान का नेतृत्व किया. उस समय फिरोज रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे. जल्द ही फिरोज सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ा चेहरा बन गए. उन्होंने बहुत से भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का पर्दा फाश किया,जिसमे बीमा कम्पनी और वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी का नाम शामिल था. वित्त मंत्री को तब जवाहर लाल नेहरु का करीबी माना जाता था.
इस तरह फिरोज राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की मुख्य धारा में सामने आये, और अपने थोड़े से समर्थकों के साथ उन्होंने केंद्र सरकार के साथ अपना संघर्ष ज़ारी रखा, लेकिन 8 सितम्बर 1960 को फिरोज की हृदयघात से मृत्यु हो गई.
कांग्रेस प्रेसिडेंट के रूप में इंदिरा (Indira as Congress President)
1959 में इंदिरा को इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी का प्रेसिडेंट चुना गया था. वो जवाहर लाल नेहरु की प्रमुख एडवाइजर टीम में शामिल थी. 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु के बाद इंदिरा ने चुनाव लड़ने का निश्चय किया और वो जीत भी गयी. उन्हें लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इनफार्मेशन एंड ब्राडकास्टिंग मंत्रालय दिया।
भारत-पकिस्तान युद्ध 1971 में इंदिरा गाँधी की भूमिका (Indo-Pakistan War in 1971)
वास्तव में 1971 में इंदिरा को बहुत बडे संकट का सामना करना पड़ा. युद्ध की शुरुआत तब हुयी थी,जब पश्चिम पाकिस्तान की सेनाएं अपनी स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए बंगाली पूर्वी पाकिस्तान में गईं. उन्होंने 31 मार्च को भयानक हिंसा के खिलाफ बात की, लेकिन प्रतिरोध जारी रहा और लाखों शरणार्थियों ने पड़ोसी देश भारत में प्रवेश करना शुरू कर दिया.
इन शरणार्थियों की देखभाल में भारत में संसाधनों का संकट होने लगा, इस कारण देश के भीतर भी तनाव काफी बढ गया. हालांकि भारत ने वहाँ के लिए संघर्षरतस्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन कीया. स्थिति तब और भी जटिल हो गई, जब अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चाहा, कि संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो, जबकि इधर चीन पहले से पाकिस्तान को हथियार दे रहा था, और भारत ने सोवियत संघ के साथ “शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि” पर हस्ताक्षर किए थे.
पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में आम-जन पर अत्यचार करने शुरू कर दिए, जिनमें हिन्दुओं को मुख्य रूप से लक्षित किया गया, नतीजतन, लगभग 10 मिलियन पूर्व पाकिस्तानी नागरिक देश से भाग गए और भारत में शरण मांगी. भारी संख्या में शरणार्थी होने की स्थिति ने इंदिरा गांधी को पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ आजामी लीग के स्वतंत्रता के संघर्ष को समर्थन देने के लिए प्रेरित किया.
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