बाल गंगाधर तिलक की जीवनी (bal gangadhar tlik'& biography in hindi)

बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय | Bal Gangadhar Tilak Biography in HindI....



        भारत के इतिहास के पन्नों को पलटा जाये, तो कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये. उन्हीं में से एक हैं बाल गंगाधर तिलक, जिनका नाम लेने में आज भी बहुत गर्व होता है. वे आधुनिक भारत के एक प्रमुख वास्तुकार थे. वे भारत के लिए स्वराज / स्वयं के नियम के प्रमुख समर्थक थे. उनका कथन था कि –‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं, और मैं इसे पा कर रहूँगा’. इन्होंने भारत के संघर्ष के दौरान एक क्रांतिकारी के रूप में कार्य किया. उन्हें उनके समर्थकों ने सम्मानित करने के लिए ‘लोकमान्य’ का ख़िताब दिया. वे एक महान विद्वान व्यक्ति थे, जिनका मानना था कि आजादी एक राष्ट्र के कल्याण के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है.
   जब इनका जन्म हुआ तब इनका नाम केशव गंगाधर तिलक रखा गया था. वे एक ऐसे परिवार से संबंध रखते थे, जोकि मराठी चित्पावन ब्राम्हण परिवार था. उनके पिता एक स्कूल में शिक्षक और साथ ही संस्कृत के विद्वान थे. तिलक जी के शुरूआती जीवन में वे एक प्रभावशाली भूमिका निभाते थे. तिलक जी ने अपनी अधिकांश शुरूआती शिक्षा घर पर ही अपने पिता से प्राप्त की. तिलक जी बेहद बुद्धिमान एवं शरारती थे, किन्तु उन्हें उनके शिक्षक पसंद नहीं थे. जब वे युवा हुए, वे अपने स्वतंत्र विचारों और मजबूत राय में समझौता नहीं करते थे, इसलिए वे अपने उम्र के अन्य लोगों से काफी अलग थे. सन 1871 में जब वे 16 साल के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई. उनके पिता की मृत्यु के कुछ माह पहले ही उनका विवाह तापी बाई से हुआ था, जिनका नाम बाद में सत्यभामा बाई कर दिया गया. इस तरह से इनका शुरुआती जीवन बीता.
    शिक्षा एवं करियर (UEducation and Career)

      तिलक जी एक बुद्धिमान छात्र थे, वे बचपन से ही वे स्वाभाव में सच्चे और सीधे इंसान थे. उनका दृष्टिकोण हमेशा से ही अन्याय के खिलाफ होता था, उनकी इसके प्रति बचपन से ही स्वतंत्र राय थी. सन 1877 में संस्कृत और गणित में इन्होने पुणे के डेक्कन कॉलेज से स्नातक (बी ए) की डिग्री प्राप्त की. उसके बाद उन्होंने मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी का अध्ययन किया और सन 1879 में उन्होंने अपनी कानून की डिग्री प्राप्त की.

   अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पुणे के एक प्राइवेट स्कूल में अंग्रेजी और गणित पढ़ाना शुरू किया. किन्तु स्कूल के अधिकारियों के साथ उनकी सहमति नहीं होने के कारण उन्होंने सन 1880 में स्कूल में पढ़ाना छोड़ दिया और वे राष्ट्रवाद पर जोर देने लगे. वे उन युवा पीढ़ियों में से एक थे, जोकि आधुनिक कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारतीयों की पहली पीढ़ी थी।

    तिलक जी ने अंग्रेजों द्वारा भारत में कराई जा रही शैक्षिणक प्रणाली का कठोरता से विरोध किया. इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश छात्रों की तुलना में भारतीय छात्रों के साथ हो रहे असमान व्यवहार के खिलाफ भी विरोध किया, और भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की. उनके अनुसार भारतीयों को दी जाने वाली शिक्षा पर्याप्त नहीं थी, और भारतीय इससे अनजान और अज्ञानी बने रहते थे. इसलिए उन्होंने सन 1880 में भारतीय युवाओं के लिए राष्ट्रवादी शिक्षा को प्रेरित करने एवं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य से अपने कॉलेज के साथी विष्णु शास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी और गोपाल गणेश अगरकर के साथ मिलकर डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की शुरुआत की.
  राजनीतिक करियर (Political Career)

      तिलक जी ब्रिटिशों के शासन को हटाकर भारतीय ऑटोनोमी के लिए आंदोलन चलाने के लिए अपने राजनीतिक करियर की ओर चल दिए. गाँधी से पहले, वे सबसे ज्यादा व्यापक रूप से जाने माने भारतीय राजनेता थे. उन्हें उस समय का एक कट्टरपंथी राष्ट्रवादी माना जाता था, लेकिन वे एक समाजिक रुढ़िवादी थे. सन 1890 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. उन्होंने इस पार्टी के दृष्टिकोण का विरोध किया, जोकि स्व-शासन के लिए लड़ाई की ओर नहीं था. उनका कहना था कि ब्रिटिशों के खिलाफ अपने आप में सिंपल संवैधानिक आंदोलन करना व्यर्थ है. इसके बाद वे प्रमुख कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के खिलाफ खड़े हुए. वे अंग्रेजों को दूर करने के लिए एक सशस्त्र विद्रोह चाहते थे. लार्ड कर्ज़न द्वारा किये गये बंगाल के विभाजन के समय तिलक जी ने स्वदेशी आंदोलन और ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार का दिल से समर्थन किया था. किन्तु उनके द्वारा की गई इस कोशिश ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और आंदोलन के अंदर कई विवादों को जन्म दिया.

 बाल गंगाधर तिलक जी की याद में धरोहर (Bal Gangadhar Tilak Legacy)


      तिलक जी की याद में पुणे शहर में एक तिलक म्यूजियम बनाया गया है, जोकि वहां के सबसे महत्वपूर्ण म्यूजियम में से एक है. यह म्यूजियम उनके निवास स्थान पुणे के नारायण पेठ क्षेत्र में स्थित, केसरी वाडा प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारक में दुसरी मंजिल पर बनाया गया है. इसे गायकवाड वाडा भी कहा जाता है. इसके अलावा पुणे में ‘तिलक रंगा मंदिर’ नाम का थिएटर ऑडिटोरियम भी उन्हें समर्पित किया गया है. सन 2007 में भारत सरकार ने तिलक की 150 वीं जयंती मनाने के लिए एक सिक्का जारी किया था. उनकी याद में एक फिल्म भी बनाई गई, जिसका नाम ‘लोकमान्य : एक युग पुरुष’ था. यह फिल्म 2 जनवरी सन 2015 को रिलीज की गई थी, जोकि तिलक जी की जीवनी पर आधारित थी. इस फिल्म का निर्देशन ओम राउत ने किया था, और इसमें तिलक जी का अभिनय अभिनेता सुबोध भावे ने किया था.

रोचक तथ्य (Interesting Facts)

    तिलक जी ने जमशेद जी टाटा के साथ मिलकर सन 1900 में को – ओप स्टोर कंपनी लिमिटेड को स्वदेशी वस्तुओं का ग्राहक बनने के लिए प्रोत्साहित किया, और उस स्टोर को अब बॉम्बे स्टोर के नाम से जाना जाता है.
तिलक जी की वेशभूषा की बात की जाए, तो तिलक जी अक्सर धोती और कुर्ता पहना करते थे. साथ ही उनके सर पर लाल रंग की पगड़ी हुआ करती थी. ऐसा कहा जा सकता है कि वे मराठी संस्कृति की पोशाक पहनते थे.
गणेश चतुर्थी का त्यौहार लोग अपने घर पर ही मनाते थे, किन्तु तिलक जी ने सन 1893 से लोगों को इस त्यौहार को सर्वजनिक एकता के साथ मनाने एवं इसे सार्वजनिक त्यौहार में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया.
तिलक जी अपने बलिदान और त्याग की उच्चतम भावना के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने ‘भारत माता’ के लिए धन, आराम, परिवार, ख़ुशी और स्वास्थ्य का त्याग किया था.
अनमोल वचन (Quotes)

     आजादी में प्रगति होती है, स्व – सरकार के बिना न तो औद्द्योगिक प्रगति संभव हैं, और न ही शैक्षिक योजना देश के लिए उपयोगी है.
धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं है. सन्यास लेना जीवन छोड़ना नहीं होता है. असली भावना केवल परिवार के लिए नहीं बल्कि देश के लिए मिलकर काम करने में है. इसलिए हमें पहले मानवता की सेवा की ओर कदम बढ़ाना चाहिए और उसके बाद भगवान की सेवा की ओर.
अगर भगवान को अस्पृश्यता के साथ रखा जाता है, तो उसे मैं भगवान नहीं कहूँगा.
जीवन पूरी तरह से एक ताश के खेल के समान है. सही ताश को चुनना हमारे हाथ में नहीं होता है. लेकिन उसे अच्छी तरह से खेलना हमारी सफलता सुनिश्चित करता है.
सफल होने के लिए आपको परिवार और दोस्तों की आवश्यकता है, लेकिन बहुत सफल होने के लिए आपको दुश्मनों और प्रतिस्पर्धियों की आवश्यकता है.
समस्या, संसाधनों या क्षमता की कमी के कारण नहीं होती, बल्कि इच्छा की कमी के कारण होती है.
हमारा देश एक पेड़ की तरह हैं जिसमें मूल जड़ स्वराज्य है और उसकी शाखाएं स्वदेशी।

                          Blogging by :-®Suman Singh..... 

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